हिम कुक्कुट पालन योजना
परिचय
हिमाचल प्रदेश में कुक्कुट पालन ने उचित मूल्य पर आहार में प्रोटीन की उपलब्धता को बढ़ाकर स्वरोजगार के अवसर व् ग्रामीण आबादी के पोषण स्तर को बढ़ाने में व्यापक क्षमता दिखाई है। हाल के वर्षों में, एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति देखने को मिली है जहाँ दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी पाई गई है, जो कि अधिकांश आबादी के लिए प्रोटीन का एकमात्र प्रमुख स्रोत है। पोषण संबंधी मांग में प्रोटीन की कमी को तेजी से पाटना होगा तथा और कुक्कुट उतपाद प्रोटीन का एक किफायती वैकल्पिक स्रोत बनकर उभरा है ।
हिमाचल प्रदेश में कुक्कुट पालन ग्रामीण आबादी विशेषकर भूमिहीनों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इस तथ्य के कारण है कि कुक्कुट पालन करने हेतु न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता होती है व् त्वरित रिटर्न भी सुनिश्चित होता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। कुक्कुट उत्पादों की बिक्री से प्राप्त आय किसानो को बीज, कीटनाशकों आदि की खरीद के लिए अतिरिक्त आय अर्जित कर फसल उत्पादन की वृद्धि में भी मदद करती है। 2020-21 में हिमाचल प्रदेश में मुर्गी मांस का उत्पादन और अंडा उत्पादन क्रमशः 1252.406 टन और 1007.002 लाख था ।
हिमाचल प्रदेश में कुक्कुट उत्पादन मूलरूप से लघु स्तर पर आगनबाड़ी कुक्कुट पालन के रूप में किया जाता है क्योंकि लोग प्रदेश की भौगोलिक व् जलवायु परिस्थिति तथा ग्रामीण आबादी के निवेश प्रोफ़ाइल के कारण बड़ी कुक्कुट इकाइयों के बजाये लघु कुक्कुट इकाइयों यानि 50 से 100 पक्षियों वाली इकाइयों को पसंद करते हैं। ये बैकयार्ड इकाइयाँ काफी लोकप्रिय हो रही हैं क्योंकि यह अतिरिक्त व्यय किए बिना अतिरिक्त आय के साथ-साथ उच्च क्रम का पोषण भी प्रदान करती हैं। प्रदेश में पशुपालन विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कुक्कुट विकास योजनायों के माध्यम से संकर नस्ल के कुक्कुट पक्षियों को आवंटित किया जाता है जिससे कुक्कुट पालन कार्यक्रम को सफल बनाया है।
अभिप्राय और उद्देश्य
निम्नलिखित लक्ष्यों और उद्देश्यों को भी प्राप्त किया जाएगा:-
- राज्य के लोगों को अच्छा आहार प्रदान करना। स्थानीय स्तर पर उत्पादित होने पर कुक्कुट पक्षी को उचित दरों पर उपलब्ध कराना संभव होगा। बढती हुई ग्रामीण आबादी को प्रोटीन-कैलोरी कुपोषण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है जिसे कुकुट पालन के माध्यम से उच्च जैविक मूल्यों वाले पशु प्रोटीन की आवश्यकता को कुक्कुट मांस के माध्यम से पूरा किया जाता है।
- ग्रामीण लोगों की आय बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन को पशु पालन के साथ-साथ मिश्रित खेती के तौर पर फसल उत्पादन के रूप में किया जा सकता है।
- किसानों की आय को दुगनी करना।
- ग्रामीण आबादी के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए क्योंकि उनमें से ज्यादातर बेरोजगार या पूरी तरह से कम बेरोजगार होते हैं।
- न्यूनतम लागत पर उच्च कोटि की खाद का उत्पादन करना।
रणनीति
चूंकि अधिक से अधिक कुक्कुट पलकों ने बैकयार्ड योजना में अपनी सफलता के परिणाम स्वरूप अब वाणिज्यिक मुर्गीपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने की ओर झुकाव दिखाया है। वे चाहते हैं कि विभाग राज्य में भी वाणिज्यिक ब्रॉयलर पालन पर ध्यान केंद्रित करे। ऐसे कुक्कुट पालकों/उद्यमियों/किसानों के लाभ के लिए और कुक्कुट पालन को एक उद्यम के रूप में देखते हुए, कुक्कुट पलकों को राज्य में अनुदान के आधार पर सरकार द्वारा ब्रायलर योजना के माध्यम से सहायता के रूप में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को देखते हुए, इस योजना को लागु किया है।
लक्षित लाभार्थी
इस योजना के तहत लक्षित समूह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/सामान्य वर्ग के किसान होंगे जिन्होंने सरकारी पोल्ट्री फार्मों से कुक्कुट पालन का प्रशिक्षण लिया है। विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न व्यावसायिक ब्रायलर योजना के तहत (दो वर्ष या उससे अधिक) पहले लाभान्वित किये गए कुक्कुट पालकों को भी इस योजना के तहत लाभ दिया जाएगा तथा वह इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं बशर्ते वह पूर्व में आबंटित योजना को सफलतापूर्वक चला रहे हों तथा और स्थापित कुक्कुट इकाई अभी भी चलायी जा रही हो।
इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को संबंधित अधिकारी/पशु चिकित्सा अधिकारी को निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन करना होगा।
आवेदक को आवेदन के साथ यह शपथ पत्र देना होगा कि वह योजना के नियमों और शर्तों का पालन करेगा तथा वाणिज्यक ब्रॉयलर योजनाओं के तहत इससे पहले ऐसा कोई लाभ नहीं लिया है। वह परियोजना के दौरान इस योजना के अंतर्गत स्थापित की गई कुक्कुट इकाई को बंद नहीं करेगा तथा यदि वह योजना को बंद कर देता है या योजना के किसी भी नियम और शर्त का उल्लंघन करता है, ऐसी स्थिति में उसे योजना की पूरी राशि ब्याज सहित 12% की दर से वापस करनी होगी। उक्त राशि भू-राजस्व के बकाया अनुदान राशि के रूप में वसूली की जाऐगी।
लाभार्थी को सम्बंधित भूमि के स्वामित्व/कब्जे को स्थापित करने वाले दस्तावेजों की सत्यापित/प्रमाणित प्रति प्रदान करनी होगी जिस पर शेड का निर्माण हुआ है/निर्माण किया जाना है।
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी/पशु चिकित्सा अधिकारी लाभार्थी के आवेदन को नियंत्रण अधिकारी के पास अग्रेषित करेंगे, जो पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आवेदन की जांच के बाद लाभार्थियों का चयन करेंगे।
शेड और स्टोर के निर्माण के लिए अनुदान प्राप्त करने के लिए लाभार्थी को कनिष्ठ अभियंता या उससे ऊपर के संबंधित ब्लॉक/एचपीपीडब्ल्यूडी सब-डिवीजन के अधिकारी द्वारा विधिवत सत्यापित अनुमान पूर्णता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। तदुपरांत अनुदान की राशी को सम्बन्धित ज़िले के आहरण और वितरण अधिकारी/उप-निदेशक (प०स्व०/प०) द्वारा आरटीजीएस के माध्यम से लाभार्थी के लिंक किए गए बैंक खाते में स्थानांतरित की जाएगी।
अनुदान
बजट की उपलब्धता के अनुसार पहले आओ पहले पाओ के आधार पर अनुमोदित मानदंडों के अनुसार सब्सिडी घटक के तहत सरकार इस परियोजना में शेड निर्माण व्यय आबंटन हेतु धन राशी उपलब्ध कराएगी। कुल पूंजी निवेश में से 60% अनुदान सहायता होगी जबकि अधिकतम 40% लाभार्ति अंश/बैंकों द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व् सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को प्रदान किया जाने वाला घटक होगा।
चूंकि लाभार्थी एक बार में 3000 चूजों को पालने में सक्षम नहीं होगा, इसलिए आवश्यकता के अनुसार 1000 चूजों की किश्त में चूज़े उपलब्ध कराने का इस योजना में प्रावधान किया गया है।